दादा हमारे डाक बाबू थे, ब्रिटिश शासनकाल में। यह समाज में रुतबे वाला पद था। उन दिनों लद्दाख में तैनाती थी। दादी को लेकिन पास पड़ोस की महिलाओं की खुसर पुसर से परेशानी थी । निस्का बोमो , निस्का बोमो ,बूचा मेथ ! यानि लड़कियां ही लड़कियां हैं , लड़का कोई नहीं। सो जब पिता जी का जनम हुआ तो लाडले बच्चे का नाम रखा गया जवाहर लाल । दादी तो दादी हमारी बुआओं ने भी इस भाई को लाड लडाने में कोई कमी न छोड़ी। 70 साल पहले घर का खाना पसंद न आने पे इस बच्चे के लिए होटल से पसंद का खाना मंगवाया जाता रहा ! अंग्रेज गए देश आजाद हुआ। बंटवारे के दौरान गाँव का घर जला दिया गया। किसी तरह खाली हाथ लुट पिट कर शहर पहुंचे और एक रिश्तेदार के किराये के मकान में शरण ली।
जैसे तैसे पढ़ाई की। कश्मीर में ढंग का काम न मिलना था न मिला। इस दौरान प्यार , शादी ,बच्चा वगेरह सब हो गया। सो एक दिन 8 रुपय्ये जेब में डाले दिल्ली चले आये! बहन के पास। एक समाचार एजेंसी में मामूली सा काम मिला। अब कमरे का किराया और पीछे घर को खर्चे के लिए पैसा भेजने के बाद दो वक़्त की रोटी खाने लायक नहीं बचता था। सस्ता जमाना था ;रोटी के साथ दाल मुफ्त मिला करती थी। सो दो रोटी का पैसा चुकाते रहे और फ्री दाल से पेट भरते रहे। तीसरी खाते तो शाम का क्या होता?
समय के साथ कुछ चीज़ें बदली। नहीं बदला तो यह की हम पिताजी को दुनियादार नहीं बना सके। पत्नी के ताने बेकार ; बच्चों का रूठना बेकार; दोस्तों का रस्ता दिखाना बेकार; रिश्तेदारों का उलाहना बेकार। अरे भई अमुक आदमी फलां पोस्ट आपसे पहले कैसे पा गया ? देखिये उसको सरकारी घर मिला ; आप कहाँ रह गए ? अच्छा हम लोग कार क्यों नहीं ले सकते? मंत्री जी से नहीं कहला सकते तो इतने साल पत्रकारिता का क्या फायदा? हे भगवन यह सीधा आदमी हमारे ही पल्ले पड़ना था?
सालो हमारे घर में वृहत परिवार के लोग आते रहे। कोई शिक्षा के लिए , कोई नौकरी के लिए , कोई मुसीबत का मारा तो कोई वैसे ही सर्दियों में दिल्ली घूमने के लिए। कोई 6 दिन रहा कोई 6 साल। हम चाहे मन में कोसते रहे ,पर पिता के चेहरे पे कोई शिकन न आई। हमारे घर का नाम रखा था "जवाहर ढाबा". आज भी जब हम दो तीन लोग ही खाने की टेबल होते हैं तो बड़ा अजीब लगता है।
किसी आदमी का मूल्यांकन उसकी वाणी , विचार और कर्म से करें। उसके पद , पैसे और पुरस्कार से नहीं। फिर भी अच्छा लगा एक शरीफ आदमी का यूँ सम्मान पाना। आज उन्हें मिला पदम श्री सिर्फ उनका नहीं है।
जीवन में जितने लोगों ने उनका साथ पाया उन सबका भी है। हर उस सीधे ,और भोले इंसान का भी है जो जोड़ तोड़ नहीं जानता। जो जुगाड़ नहीं बिठा पाता;बस अपना कर्म अपनी शक्ति अनुसार करता रहता है
मै थोड़ी दृष्टता तो कर रहा हूँ पर जानता हूँ कि मेरे पिता बुरा नहीं मनाएंगे। सो यह सम्मान हमारे परिवार की परम्पराओं के अनुसार आप सब के साथ साँझा कर रहा हूँ. चाहें तो आप भी आगे हर भले मानुस के साथ साँझा कर लें।
जैसे तैसे पढ़ाई की। कश्मीर में ढंग का काम न मिलना था न मिला। इस दौरान प्यार , शादी ,बच्चा वगेरह सब हो गया। सो एक दिन 8 रुपय्ये जेब में डाले दिल्ली चले आये! बहन के पास। एक समाचार एजेंसी में मामूली सा काम मिला। अब कमरे का किराया और पीछे घर को खर्चे के लिए पैसा भेजने के बाद दो वक़्त की रोटी खाने लायक नहीं बचता था। सस्ता जमाना था ;रोटी के साथ दाल मुफ्त मिला करती थी। सो दो रोटी का पैसा चुकाते रहे और फ्री दाल से पेट भरते रहे। तीसरी खाते तो शाम का क्या होता?
समय के साथ कुछ चीज़ें बदली। नहीं बदला तो यह की हम पिताजी को दुनियादार नहीं बना सके। पत्नी के ताने बेकार ; बच्चों का रूठना बेकार; दोस्तों का रस्ता दिखाना बेकार; रिश्तेदारों का उलाहना बेकार। अरे भई अमुक आदमी फलां पोस्ट आपसे पहले कैसे पा गया ? देखिये उसको सरकारी घर मिला ; आप कहाँ रह गए ? अच्छा हम लोग कार क्यों नहीं ले सकते? मंत्री जी से नहीं कहला सकते तो इतने साल पत्रकारिता का क्या फायदा? हे भगवन यह सीधा आदमी हमारे ही पल्ले पड़ना था?
सालो हमारे घर में वृहत परिवार के लोग आते रहे। कोई शिक्षा के लिए , कोई नौकरी के लिए , कोई मुसीबत का मारा तो कोई वैसे ही सर्दियों में दिल्ली घूमने के लिए। कोई 6 दिन रहा कोई 6 साल। हम चाहे मन में कोसते रहे ,पर पिता के चेहरे पे कोई शिकन न आई। हमारे घर का नाम रखा था "जवाहर ढाबा". आज भी जब हम दो तीन लोग ही खाने की टेबल होते हैं तो बड़ा अजीब लगता है।
किसी आदमी का मूल्यांकन उसकी वाणी , विचार और कर्म से करें। उसके पद , पैसे और पुरस्कार से नहीं। फिर भी अच्छा लगा एक शरीफ आदमी का यूँ सम्मान पाना। आज उन्हें मिला पदम श्री सिर्फ उनका नहीं है।
जीवन में जितने लोगों ने उनका साथ पाया उन सबका भी है। हर उस सीधे ,और भोले इंसान का भी है जो जोड़ तोड़ नहीं जानता। जो जुगाड़ नहीं बिठा पाता;बस अपना कर्म अपनी शक्ति अनुसार करता रहता है
मै थोड़ी दृष्टता तो कर रहा हूँ पर जानता हूँ कि मेरे पिता बुरा नहीं मनाएंगे। सो यह सम्मान हमारे परिवार की परम्पराओं के अनुसार आप सब के साथ साँझा कर रहा हूँ. चाहें तो आप भी आगे हर भले मानुस के साथ साँझा कर लें।
लोग झूठ बोलते हैं; सीधी ऊँगली से भी घी निकलता है। आप सबको गणतंत्र दिवस की बधाई !
he is a smajrishi in true sense.even after doing so much for the society people do not know much about him.it becomes our duty to bring forward these kind of personalaties.
ReplyDeleteJohri hi Jawahar pehchanta hai. Apka Dhanyawad! Karmanyewadhikarastu.... ko jivan me chritarth kaise kiya jata hai yeh inse seekh lena chahiye.
Deletehe is a smajrishi in true sense.even after doing so much for the society people do not know much about him.it becomes our duty to bring forward these kind of personalaties.
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