भारत में रेल का सफ़र करना बड़े फायदे का सौदा रहता है। आपको अपने सारे रिश्तेदार मिल जाते हैं। वो भी ऐसे जिन्हें आप आज से पहले मिले ही न हो! कोई आंटी, कोई भैया,कोई चाचा; कोई बेटा... खास कर सेकंड क्लास के डिब्बे में। ये दुनिया में शायद और कहीं न होगा।
सो ऐसे ही एक सफ़र में अलीगढ़ में पढ़ने वाले कश्मीर के छात्रों का एक ग्रुप चढ़ा मेरे सामने ही उनकी सीटें थीं। मैं दिल्ली से बैठा था। सब के सब मेरे से बहुत छोटे थे उम्र में। सो लगभग घंटे भर में मेरे को भैया भैया कहने लगे। बातचीत होती रही, खाना उनके पास नहीं था , कुछ मैने दिया कुछ फल वगेरह और एक आध ने रेल वाली थाली भी मंगवाई।
इसी दौरान पढ़ाई लिखाई की बातें हुई तो एक लड़का फार्मेसी कर रहा था। एक और कुछ जो मुझे अब याद नहीं; और बाकी के चार इस्लामिक स्टडीज। थोड़ा पूछ ताछ की मैने तो बड़े डिफेंसिव हो गए। मैने समझाने की कोशिश की कि बेटा जैसे तुम्हारा ये दोस्त फार्मेसी कर के न सिर्फ अपने गांव और परिवार की मदद कर सकेगा , बल्कि अपने जीवन को भी सही चला पाएगा। तुम्हारे गांव में यूं ही तीन मस्जिदें हैं। तुम्हारी जगह कहां बनेगी? बनी भी तो मामूली। उस पर न तुम कोई हिंदी या अंग्रेजी जानते हो, उर्दू भी मामूली है। किसी तरह का स्किल नहीं , कोई रोजगार का जरिया नहीं बन रहा। खेती पर विश्वास नहीं किया। सिर्फ अरबी का ज्ञान तुम्हारा साथ कितना दे पाएगी? उन्हें मेरी बात जमी नहीं। अंत में उनका था कि हमें सबाब मिलेगा। इस दुनिया से ज्यादा आख़िरत का फिक्र होना चाहिए; और कुरान के अलावा कोई ज्ञान कहीं नहीं है।
वो लोग पूरी तरह मत शिक्षित हो चुके थे। जो दो बच्चे उनसे पढ़ाई में अलग थे उनका भी मूक समर्थन ही था। खैर! चूंकि मैं खुद कश्मीर का हूं तो मेरे को बाकी स्थिति का भी अंदाजा हो गया। मेरा दिल अनिष्ट की आशंका से बैठ सा गया, हालांकि वो सारे बच्चे जम्मू पहुंचने तक भैया भैया कह के घर, बाहर और दुनिया का पूछते सुनाते रहे। इस घटना के कुछ महीने बाद ही कश्मीर में हिंदू होलोकास्ट अंजाम दे दिया गया।
वो पीढ़ी आज ऊंचे नीचे पदों पर तैनात होगी। कोई स्कूल में हेडमास्टर होगा तो कोई बिजली विभाग में होगा। कोई एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में गांव में होगा; कोई श्रीनगर डेवलपमेंट ऑथोरिटी जैसे शहरी विभाग में। कई पुलिस में होंगे , कई बैंकों में तो कई राज भवन के दफ्तर में भी होंगे ही।यानी समाज के हर वर्ग में, हर शहर, हर गांव में। हर मुहल्ले में। दिमाग में आ रहा है कि नहीं!
आज किसी ने मासूमियत से पूछा कि ये कश्मीरी डॉक्टर क्यों टेररिस्ट बना? तो मुझे याद आई वो रेल यात्रा जिसमें मुझे भविष्य का अंधेरा नज़र आया था। तो भैया डॉक्टर हो, इंजीनियर हो, चपरासी हो या ड्राइवर हो..... सबके लिए काफ़िर को मुसलमान बनाना सबाब; मुसलमान न हो तो उसका घर जला, लूट पीट कर घर से भगाना सबाब; रुक गया तो उसको जान से मारना सबाब। विरोध करे तो जहां मिले, जैसे मिले उसका कत्ल सबाब। इस सब में अपनी जान बच गई तो गाज़ी का खिताब; जान जाए तो शहादत का सबाब ! फिर इस सबसे अल्लाह को राज़ी करने का सबाब और फिर जन्नत में 72 हूरों के साथ जिंगा ला ला सबाब! सबाब ही सबाब!
ये पक्का अप्रूव्ड ब्लू प्रिंट है। कोई इससे अलग कुछ करे तो करे, वरना जो है यही है।
ये बात कई बार की जा चुकी है; कभी थोड़ा खुल कर, कभी दबे लफ्जों में ; कहीं कोई नाराज़ न हो जाए। तुमको बीजेपी का बंदा और पुराने विचारों का हामी ; एंटी इस्लाम न समझे। फ़िर वोट बैंक का मसला भी रहता है। पर साफ़ बात है कि कश्मीर में हर मुसलमान को टेररिस्ट न समझें पर टेररिज्म का समर्थक जरूर समझें। यही उसकी बचपन से परवरिश हुई है। यही उसका सारा परिवेश है। यही वो है; ये ही सच है।
उनके साथ उसी तरह का सलूक रखे तो ठीक ; नहीं तो यही होगा जो होता आया है। डॉक्टर एक-47 छिपाएगा; इंजीनियर बॉम्ब बनाएगा; ट्रांसपोर्टर दिल्ली पहुंचाएगा और प्रोफेसर ट्रिगर दबाएगा !
समझे कि न; जब तक समझ में नहीं आएगा धमाके होते रहेंगे।कब तक अपने को धोखा देते रहेंगे? कब तक पाकिस्तान पे ठीकरा फोड़ कर्तव्य की इतिश्री समझेंगे? कब तक?
आप कन्फ्यूज़ हैं, पर सामने एकदम स्पष्ट लोग खड़े है! जिस देश में कश्मीर फाइल्स को प्रोपेगंडा कह के झूठा बताया जाए; उसे बॉम्ब धमाकों से भी कुछ सुनाई दिखाई नहीं देगा। अभी आयेंगे देखना इन बिचारे डॉक्टरों के वकील ! बताएंगे कैसे इसकी बिचारी माँ ने कर्जा लेकर डॉक्टरी करवाई; कैसे मोदी/ बीजेपी/ हिंदू अतिवाद ज़िम्मेदार है इनके बंदूक उठाने का! आप लोग सिर हिला के मज़े लेना ! मोदी फेल हो गया... वाह भाई वाह! मजलूम इंसानों की लाशों पर राजनीति करना। इधर उधर इसे या उसे भला बुरा कहना ; फिर उबर इट्स से पेस्ट्री ऑर्डर कर मस्त हो जाना।
जाओ भाई चादर तान के सो जाओ। ऐसे होता रहता है! फ़ज़ूल छाती पीटने का ड्रामा न करें!

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