Detail , self portrait by Rembrandt van Rijn (1606-1669)
ये गया कि वो गया ,लो गया इक और दिन ,
आदतन मज़बूर सा, मायूस सा, मनहूस सा ।
कहाँ क्या कौंच रहा है , कभी चैन मिलता ही नहीं ?
पल भी गुज़रता नहीं, और वक़्त भी मिलता ही नहीं।
वही दिन भर का मरना ,इस रोज़ भी ,उस रोज़ भी।
हर रोज़ वही ख्वाब फिर; मुस्तकिल सोने की रात भी ।
रह रह के उठना; भागना ,दौड़ना जीने की और ।
ठोकरों से माज़ूर ; धुंध में रेंगना पर मौत के छोर ।
क्या मतलब यूं गिड़गिड़ाना और एड़ियों को घिसना ?
बेमतलब और बेमक़सद जिंदगी के पाटों में पिसना ।
हमसे क्या मतलब ; जाती हो तो जाए जिंदगी।
हमें बता के आयी थी ? कल की जाती आज जिंदगी।
बेलौस आ गए ,बेक़सूर हैं , भुगतना भी पड़ेगा !
जायेंगे तो सही; जाने के पहले जीना भी पड़ेगा।
Roman script follows :-
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