Friday, January 8, 2016

आम और खास का सफर !

 
अच्छा  शादी हो जाये और कुछ देर चले भी तो बाल  बच्चे हो ही जाते हैं। इस का फायदा बहुत है।  आदमी को कई बातों की आदत पड़ जाती है।  दिल भी  पक्का हो जाता है। दुःख भी नहीं होता।  मालूम है कि भाई तेरी कोई नहीं सुनेगा ! जिसको जो करना है वही करेगा।  पर इस वजह से कोई चुप रहता हो ऐसा कम ही देखा  है । इंसान  नक्कार खाने में तूती बजाने  से बाज़   नहीं रहता । मै  क्या  किसी से अलग  हूँ ?

सो एक सलाह केजरीवाल जी को बिना मांगे दे देता हूँ।  सम - विषम  पे अपनी पीठ थपथाने से पहले और अपनी तस्वीरों का अख़बारों में  दीदार करने  के बाद ,  अपना छोटा मोटा सामान उठाएं और अपने  कौशांबी वाले    घर में अगले 15  दिन रहें।  लाव लश्कर के बिना। वह पहले की वैगन आर ( अगर कही हो तो ) से सम - विषम का ध्यान रखते हुए दफ्तर आयें ।  कौशाम्बी स्टेशन से  मेट्रो भी पकड़ें।  फिर देखें कि  आम आदमी को किस तरह की समस्या से दो चार होना  पड़ता है और कहाँ पहुँचने में कितना समय  लगता है। लगे   हाथों  रास्ते में आम आदमी आपको सच  सच इस कार्यक्रम की औकात बताएँगे। ये कर  सकें तो ज्यादा अच्छी तरह समझ लेंगे कि सार्वजनिक परिवहन को दुरुस्त  किये बिना और उद्योग जनित प्रदूषण पे नकेल कसे  बगैर प्रदूषण की समस्या इस तरह  के सजावटी कार्यक्रम से काबू में न आएगी। हाँ इसमें काम बहुत है. वोट बैंक की राजनीती भी नहीं हो सकेगी. और ऊपर से चुनाव से पहले काम खत्म हो न हो।  ऊपर से पंजाब का चुनाव भी आ गया।  तो वहां दिखने सुनाने को भी कुछ चाहिए !

दरबारी विदूषक की तुकबंदी  तथा  दाहिने हाथ के साइकिल पे फोटो छपवाने से बात नहीं बनती. गर आप ख़ास तरह के आम  न हो गए हों  तो है ; वरना हमारी वैसे ही कोई नहीं सुनता।  आप भी न सुने !







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