नए नाम के नए रंग में बरसों बाद तुझे देखकर,
रूह तक के दुखते ज़ख्म बेदर्दी से खुरचे गए फिर।
डूबते दिल को भरोसा दिया इस सच ने सामने आकर,
अब भी वैसी की वैसी है तेरी, हिकारत भरी वो नजर।
जीवन भर के साथ का उधार बकाया है तुझपर,
तकाज़ा करने आया कभी कोई क्या तुम्हारे दर?
कर्ज वापिस हो कैसे,क्यों, क्या करोगी सोचकर,
तुम जियो जिंदगी गुलाबी, मखमली; बेफिक्र होकर।
मै हूँ,रख लूंगा सारी तल्खियां अपनी नाकामी में सहेज कर,
बता क्या करूं, ये वादा कर जो दिया था तुझपे ऐतबार कर!
तुम अपनी चुप से कहती चलो, 'मरदूद चुप कर',
ढीठ हूँ, हवाओं से तेरी लेता रहूंगा खोज खबर।
इस मूर्ख को समझाया था डूबता सौदा मत कर,
चलो दो, अगली बार के लिए कोरा कागज़ दस्तख़त कर।
एवज में समय के अंत तक मांगूंगा ,'प्रभु इसका भला कर',
या कि फिर वादा खिलाफी करोगी, अख्तियारों का पत्ता चल कर?
अपनी भली खबर भेजो, दो अक्षर हाल लिख डालो। ...बस मुक्तसर
मेरी वफ़ा है बस अक्स तेरा; इसी हिकमत से फिर तेरे साथ रहूंगा उम्र भर,
बता क्या करूं? ये वादा कर जो दिया था तुझ पर ऐतबार कर!
No comments:
Post a Comment
You are welcome to add a byte to our bark. You can agree, disagree, be critical, humorous or sarcastic. Add information or correct information. We do not have a copy editor so we'll not edit a single word of yours. We however have an in-house butcher who'll entirely cut away any abusive post. Come to think of it, most editors have the finesse of a butcher anyway!